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साहित्य समाज का दर्पण होता है। समाज जिस प्रकार होगा, वह उसी भांति साहित्य में प्रतिबिंबित होगा। समाज के उत्थान, पतन, समृद्धि और दुरवस्था के निश्चित ज्ञान का प्रधान साधन साहित्य होता है। संस्कृत साहित्य का इतिहास पूर्वोक्त सिद्धांत का पूर्ण समर्थक है। राष्ट्रीय भावना का उदय भारतवर्ष में हुआ है। देश-प्रेम, देशोन्नति तथा राष्ट्रीय समुदाय की भावना संस्कृत भाषा में निबद्ध साहित्य में पूर्ण रीति से विकसित है। संस्कृत साहित्य ही स्वतंत्र भारत के साहित्यिक चिंतन की पूर्णता है।
भारतवर्ष विश्वभर में उन्नति के चरम सीमा पर पहुँचा था और विश्वबन्धुत्व का संदेश संसार के सभ्य मानवों तथा जातियों को भौतिक एवं आध्यात्मिक विकास की ओर अग्रसर करने का कार्य केवल संस्कृत से ही संभव हुआ था। "सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः" इस भाव को विकसित करने का काम केवल संस्कृत भाषा में ही संभव है। किसी भी शैक्षणिक संस्था का मुख्य उद्देश्य यही हुआ करता है।
संस्था में अध्ययन करने वाले छात्रों के मन में राष्ट्रप्रेम और विश्वबन्धुत्व का भाव निरंतर रूप से प्रवाहित करने का कार्य केवल संस्कृत भाषा से ही हो सकता है। छात्र-छात्राओं के सतत विकास, व्यक्तित्व संवर्धन और उन्नति के लिए पं. एस.एन. शुक्ला विश्वविद्यालय का संस्कृत विभाग, सन 1956 में स्थापित राजकीय महाविद्यालय शहडोल का 1 जून 2017 का उन्नत स्वरूप है। संस्कृत विभाग भारतीय संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का वाहक है, जहाँ छात्र-छात्राओं के सम्पूर्ण ज्ञान वर्धन और कौशल विकास के लिए संस्कृत सम्भाषण, वाद-विवाद, काव्यपाठ, गीतापाठ, कर्मकाण्ड आदि प्रतियोगिताओं का समय-समय पर आयोजन किया जाता है।
विभाग के द्वारा बी.ए., एम.ए., पीएच.डी. पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं। साथ ही पौरोहित्य तथा कर्मकाण्ड विषय का डिप्लोमा पाठ्यक्रम भी संचालित किया जाता है।
विभाग का मिशन सभी प्रासंगिक क्षेत्रों में भारतीय ज्ञान-प्रणाली को बढ़ावा देना तथा मुख्यधारा की शिक्षा में संस्कृत को एक माध्यम बनाना है। विभाग का लक्ष्य ऐसे विद्यार्थियों को तैयार करना है जो संस्कृत को आधुनिक शिक्षाजगत् से जोड़ सकें तथा संस्कृत भाषा बहु-विषयक अनुसंधान का जीवंत क्षेत्र बनी रह सके। साथ ही रोजगार सृजन केंद्र बने, जिससे छात्र अध्ययन के साथ-साथ रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण प्राप्त कर अध्ययन के उपरांत कर्मकाण्ड, ज्योतिष आदि के माध्यम से जीविकोपार्जन कर सकें।
संस्कृत विभाग का लक्ष्य विद्यार्थियों के मन में संस्कृत विद्या की महिमा को स्थापित करना है, ताकि संस्कृत विरासत पर आधारित नए ज्ञान के लिए एक मंच तैयार हो सके। साथ ही संस्कृति और संस्कृत के क्षेत्र में समग्र विकास, प्रचार, संरक्षण और अनुसंधान के लिए जनशक्ति को शिक्षित और प्रशिक्षित किया जा सके। संस्कृत के माध्यम से रोजगार के क्षेत्र में कार्य किया जा रहा है। कर्मकाण्ड, ज्योतिष, वास्तु शास्त्र आदि के माध्यम से रोजगार सृजन करने का लक्ष्य संस्कृत विभाग का है।
संस्कृत विभाग विद्यार्थियों को विविध क्षेत्रों में शोध के अवसर प्रदान करता है। विश्वविद्यालय में सीबीसीएस सिस्टम प्रारम्भ होने के बाद विद्यार्थियों को शिक्षकों के निर्देशन में शोध के शीर्षक आवंटित किए जाते हैं, जिन पर प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाकर वे विभाग में जमा करते हैं। विभाग शोध के अवसरों की दृष्टि से समर्थ है। विभागाध्यक्ष डॉ. विनोद कुमार शर्मा अनेक विश्वविद्यालयों के पंजीकृत शोध निर्देशक हैं, जिनके निर्देशन में छह शोध छात्र पीएच.डी. उपाधि प्राप्त कर चुके हैं। डॉ. बृजेन्द्र पाण्डेय भी शोध निर्देशन हेतु पंजीयन करा रहे हैं। डॉ. धानी जामोद भी इसी दिशा में प्रयासरत हैं। विभाग के पास ग्रंथालय है तथा इंटरनेट की सुविधा से युक्त शोध कक्ष है।
1. सिविल सेवा, यू.पी.एस.सी. तथा म.प्र. लोक सेवा आयोग
2. पौरोहित्य एवं कर्मकाण्ड
3. भारतीय सेना में धर्म शिक्षक
4. शासकीय एवं अशासकीय विद्यालयों में शिक्षक
5. ज्योतिष एवं हस्तरेखा विज्ञान
6. योग शिक्षक
7. आयुर्वेद (चिकित्सा)
8. वास्तु शास्त्र
9. अनुसंधान सहायक
10. विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में सहायक प्राध्यापक
11. अभिलेखशास्त्र एवं पुरातत्व विज्ञान
12. अनुवादक एवं सम्पादक
13. पत्रकार एवं समाचार वाचक
14. कथावाचक/उपदेशक